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एक जिन्न की कथा

 एक सिद्ध पुरुष थे उनके पास एक जिन्न था



जिन्न सर्व समर्थ था गुरु जी को जब भी
स्वात या परहित का कोई भी कल्याणकारी
कार्य करवाना होता तो जिन्न को आदेश देते
और उनकी आज्ञा का गुलाम जिन्न पलक झपकते
उस कार्य को संपन्न कर देता गुरु जी के कई
शिष्य थे किंतु नन्नू उनका सबसे मु लगा था
नन्नू की सेवा भावना और समर्पण के चलते
गुरु जी उसकी प्रत्यक इच्छा की पूर्ति
बिना कोई आनाकानी किए तुरंत करते थे किंतु
इन दिनों नन्नू का मन जिन्न के चमत्कारी
कामों में बुरी तरह उलझा हुआ था नन्नू के
मन में विचार आया कि क्यों ना वह गुरुजी
से इस जिन्नू को अपने लिए मांग ले जिससे
उसके जीवन के सारे काम पूरे हो जाए वह भी
महल अटारी घोड़ा गाड़ी वाला हो
जाएगा नन्नू ने हिम्मत करके एक दिन गुरुजी
से निवेदन किया कि गुरु जी मैं आपका सेवक
हूं हर सेवक चाहता है कि जिसकी वो सेवा कर
रहा है उसकी सेवा में किसी भी प्रकार का
कोई व्यवधान ना हो गुरुजी नन्नू के कथन को
सुनकर चौक हुए पूछ
बैठे तुम कहना क्या चाहते हो
नन्नू नन्नू ने कहा गुरुदेव मैं आपकी सेवा
में लगा रहता हूं इसलिए अपने बाल बच्चों
परिजनों पर ध्यान नहीं दे पाता जिस कारण
मेरा ध्यान भटकता रहता है आपकी सेवा में
लगे रहने के बाद भी मेरे आधे मन में मेरी
अपनी चिंताएं चक्कर लगाती रहते हैं इससे
आपकी सेवा मैं पूरे मन से नहीं कर पा रहा
हूं यह एक किस्म का गुरु द्रोह है मुझे इस
अपराध बोध से मुक्त होना
है गुरु जी ने
कहा तुम्हें इस बोध से मुक्त करने के लिए
मैं क्या कर सकता हूं न संकोच होकर मुझसे
कहो नन्नू ने एक पल को गुरुजी की आंखों
में झांका और संकोच के साथ
कहा आपको दोदो जिन्नो की क्या जरूरत है
गुरु जी गुरु जीी फिर चौक
बोले दो जिन मेरे पास तो एक ही जिन है
नन्नू कैसी बातें करते हैं आप गुरु जी
नन्नू ने प्रतिकार करते हुए कहा अरे आपका
एक जिन्न तो मैं हूं और एक वो जिन्न है
जिसे आपने सिद्ध किया हुआ है जैसे वह आपके
अलावा किसी और की बात नहीं मानता वैसे ही
मैं भी आपके सिवा किसी और को घास नहीं
डालता गुरु जी ने आशंकित स्वर में
समझाया देखो बेटा तुम में और उसमें बहुत
अंतर है वो जिन्न है और तुम जीव हो जो काम
वो कर सकता है वह काम तुम नहीं कर सकते और
जो काम मैं तुमसे करवाता हूं बेटा वह काम
मैं उससे नहीं करवा सकता नन्नू ने दुखी
होते हुए कहा गुरु जी आपके पास तो मेरे
जैसे कई चेले चमा है सेवा करने के लिए
लेकिन मेरे पास कौन है बताइए क्या मुझे
सुख से रहने का कोई अधिकार नहीं है आप
जैसे सिद्ध पुरुष की सेवा का क्या यही
प्रतिफल मुझे मिलेगा कि मैं सेवक रहते हुए
ही समाप्त हो जाऊं गुरु जीी ने नन्नू को
को दुखी देखकर द्रवित होते हुए पूछा
तो तो तुम क्या चाहते हो बेटा बोलो नन्नू
ने चिरौरी करते हुए कहा मैं चाहता हूं कि
आप अपना जिन्न मुझे दे
दीजिए देखो बेटा वह भूत है तुमसे संभले का
नहीं उसको हर पल काम चाहिए होता है यदि
उसे एक क्षण के लिए भी खाली रखा गया तो वो
तुम्हें मारकर खा जाएगा नन्नू ने कहा उसकी
चिंता आप मत करिए गुरु जी मेरे पास बहुत
सारे काम है जिन्हें करते करते उसकी सारी
उम्र बीत जाएगी लेकिन काम खत्म नहीं होंगे
आप तो मुझे उस जिन्न को दे दीजिए बस मेरा
जीवन सफल हो
जाएगा गुरु जी ने कहा ठीक है आज से जिन्न
तुम्हारा
हुआ तुम उसके आका हो व अब सिर्फ तुम्हारे
आदेशों की पूर्ति करेगा लेकिन होशियार
रहना
नन्नू जिन्न के ऊपर मालिका ना हक मिलते ही
नन्नू खुशी से झूम गए कि तभी जिन्न उनके
सामने प्रकट हुआ और उसने कहा हुकुम मेरे
आका नन्नू ने कहा जिन मेरे लिए संसार का
सबसे बड़ा सबसे सुंदर घर बनाओ जिन्न ने सर
झुकाते हुए कहा जो हुकम मेरे आका और अगले
ही पल नन्नू के सामने संसार का सबसे बड़ा
महल था जिन्न की गति देखकर नन्नू भो चक के
रह गए कि तभी जिन्न ने फिर पूछा हुकुम
मेरे आका नन्नू ने कहा संसार भर के सारे
हीरे जवाहरा चाहिए जिन ने पलक झपकते ही
हीरे मोती मण माणिक्य के ढेर लगा दिए अब
नन्नू घबरा है उन्होंने एकएक करके नदी
पहाड़ सड़कें पुल हाथी घोड़ा गाड़ियां
अप्सराएं सभी काम बता दिए जिन्ने उनके
बताए हुए सभी कामों को कुछ ही मिनटों में
निपटा दिया और हाथ जोड़कर फिर से नन्नू के
सामने खड़ा हो गया और पूछा हुकुम मेरे आका
अब नन्नू का दिमाग सुन हो गया उन्हें कोई
काम याद ही नहीं आ रहा था जितने काम के
दिमाग में थे वे सभी बिजली की गति से
जिन्न ने पूरे कर दिए थे जिन्न ने विकराल
होते हुए कहा हुकुम मेरे आका मुझे काम
बताइए यदि आपने मुझे काम नहीं बताया तो
मैं आपको मार करर खा जाऊंगा आका मुझे काम
बताओ मुझे काम दो नन्नू ने दौड़ लगा दी और
अपनी जान बचाने के लिए घबरा के गुरु जी के
चरणों में गिरे और गिड़गिड़ा हुए बोले
गुरु जी मेरी रक्षा कीजिए यह जिन्न मुझे
मार कर खा जाएगा इसे देने के लिए मेरे पास
कोई काम ही नहीं बचा है हे गुरुदेव मुझे
क्षमा कर दीजिए मुझसे बहुत बड़ा अपराध हुआ
जो मैंने आपकी बात नहीं मानी आप अपना
जिन्ह वापस ले लीजिए गुरुदेव त्राहिमाम
गुरुदेव त्राहिमाम करते हुए नन्नू गुरु जी
के पैरों पर गिर
पड़े गुरुदेव ने कहा ठीक है पहले अपने
जिन्नू को आदेश दो कि अब से मैं उसका आका
हूं उसे मेरी आज्ञा माननी होगी नन्नू ने
भय से चीखते हुए जिन्नू को आदेश दिया
जिन्न नन्नू को छोड़कर गुरु जी के सामने
हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला हुकम मेरे
आप का गुरुदेव ने जिन्न से कहा कि लकड़ी
की एक सीढ़ी को दीवार से लगा दो और मेरे
अगले आदेश तक उस पर चढ़
उतरो जिन सीढ़िया चढ़ने उतरने लगा भयभीत
नन्नू को समझाते हुए गुरुदेव ने कहा जिन्न
पैदा करना आसान है नन्नू यह कोई भी कर
सकता है लेकिन जिन्न की ऊर्जा का उचित
उपयोग करना बहुत मुश्किल होता है जिन्न को
प्रत्येक पल किसी ना किसी काम में व्यस्त
रखना पड़ता है अन्यथा खाली बैठने पर वह
अपने ही मालिक को खा जाता
है हमारा मन भी हमारा जिन्न है मन सबके

पास होता है किंतु मन को साधने की कला
सबको नहीं आती इसे धैर्य पूर्वक अपने
विवेक रूपी गुरु के सानिध्य में सिद्ध
करना पड़ता
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